Dear,
इसका सारा कारण इंसान का मन है| ये एक ऐसा मन है, एक ऐसा चित्त है। ऐसा चित्त जो कब्ज़ा करना चाहता है, जो भोगना चाहता है, जो कहता है, “मेरी संपत्ति है”, जो कहता है, “मेरी चीज़ है”। उसको इंसान नहीं दिखाई पड़ रहा। उसको सिर्फ़ शरीर दिखाई पड़ रहा है, उसको सिर्फ चीज़ दिखाई पड़ रही है।
आज जानवरों की, पौधों की हज़ारों प्रजातियाँ विलुप्त हो गयीं हैं। यह क्यों विलुप्त हुईं? क्योंकि हमने उनको मात्र वस्तु समझा। “खाओ, पीयो, भोग करो, यह इसलिए ही तो हैं। यह इसलिए ही तो हैं कि हम इनका शोषण कर सकें।” आज पृथ्वी का औसत तापमान सामान्य से करीब आठ डिग्री औसतन बढ़ चुका है, और आने वाले बीस-तीस सालों में और बढ़ जाएगा। तुम्हारे जीवन काल में ही कई शहर समुद्र में विलीन हो जाएँगे।
आदमी ने पूरे जगत को मात्र चीज़ समझ रखा है। ग्लेशिअर पिघलते हैं तो पिघलने दो। पशु, पक्षियों को मार दो। इन्हें खा जाओ। “यह इसलिए ही हैं ताकि हम इन्हें खा सकें।” पुरुष कहेगा, “औरतें इसलिए ही तो हैं ताकि हम इनका भोग कर सकें।” स्त्री कहेगी, “पुरुष इसलिए ही तो हैं ताकि हम इनके साथ मौज मना सकें।” ये राह मात्र महाविनाश की ओर जाती है, और हम महाविनाश के बहुत करीब हैं।
इस महीने में ऐसा मौसम वैश्विक जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल क्लाइमेट चेंज, का सूचक है। तुमने मौसम को वस्तु समझा, यह उसका नतीजा है। यह चारों तरफ जो प्राकृतिक आपदाएँ हो रहीं हैं, कहीं तूफ़ान, कहीं भूकम्प, यह सब महाविनाश की आहटें हैं। मन क्योंकि वही है, जिसे सब कुछ मात्र भोगना है। उड़ाओ बड़े-बड़े हवाई-जहाज़, भले ही उससे सारा वातावरण नष्ट होता हो। बनाओ और मिसाइलें और न्यूक्लिअर बम, भले ही उससे दुनिया सौ बार तबाह होती हो।
‘संवाद’ पर आधारित
और पड़ने के लिए:
http://prashantadvait.com/tag/woman/
संवाद देखें:
प्रशनौत्तर:
http://www.querynanswer.com/question/what-is-the-reason-of-this-global-warming-increasing-rapes-extinction-if-animal-species-and-who-will-stop-this/
इसका सारा कारण इंसान का मन है| ये एक ऐसा मन है, एक ऐसा चित्त है। ऐसा चित्त जो कब्ज़ा करना चाहता है, जो भोगना चाहता है, जो कहता है, “मेरी संपत्ति है”, जो कहता है, “मेरी चीज़ है”। उसको इंसान नहीं दिखाई पड़ रहा। उसको सिर्फ़ शरीर दिखाई पड़ रहा है, उसको सिर्फ चीज़ दिखाई पड़ रही है।
आज जानवरों की, पौधों की हज़ारों प्रजातियाँ विलुप्त हो गयीं हैं। यह क्यों विलुप्त हुईं? क्योंकि हमने उनको मात्र वस्तु समझा। “खाओ, पीयो, भोग करो, यह इसलिए ही तो हैं। यह इसलिए ही तो हैं कि हम इनका शोषण कर सकें।” आज पृथ्वी का औसत तापमान सामान्य से करीब आठ डिग्री औसतन बढ़ चुका है, और आने वाले बीस-तीस सालों में और बढ़ जाएगा। तुम्हारे जीवन काल में ही कई शहर समुद्र में विलीन हो जाएँगे।
आदमी ने पूरे जगत को मात्र चीज़ समझ रखा है। ग्लेशिअर पिघलते हैं तो पिघलने दो। पशु, पक्षियों को मार दो। इन्हें खा जाओ। “यह इसलिए ही हैं ताकि हम इन्हें खा सकें।” पुरुष कहेगा, “औरतें इसलिए ही तो हैं ताकि हम इनका भोग कर सकें।” स्त्री कहेगी, “पुरुष इसलिए ही तो हैं ताकि हम इनके साथ मौज मना सकें।” ये राह मात्र महाविनाश की ओर जाती है, और हम महाविनाश के बहुत करीब हैं।
इस महीने में ऐसा मौसम वैश्विक जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल क्लाइमेट चेंज, का सूचक है। तुमने मौसम को वस्तु समझा, यह उसका नतीजा है। यह चारों तरफ जो प्राकृतिक आपदाएँ हो रहीं हैं, कहीं तूफ़ान, कहीं भूकम्प, यह सब महाविनाश की आहटें हैं। मन क्योंकि वही है, जिसे सब कुछ मात्र भोगना है। उड़ाओ बड़े-बड़े हवाई-जहाज़, भले ही उससे सारा वातावरण नष्ट होता हो। बनाओ और मिसाइलें और न्यूक्लिअर बम, भले ही उससे दुनिया सौ बार तबाह होती हो।
‘संवाद’ पर आधारित
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संवाद देखें:
प्रशनौत्तर:
http://www.querynanswer.com/question/what-is-the-reason-of-this-global-warming-increasing-rapes-extinction-if-animal-species-and-who-will-stop-this/
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